गढ़वाली हास्य कविता (गों मा बाघ)। Garhwali Comedy Poem (Gon Ma Baagh ,Tiger in Village)
गों जांद वक़्त दिख ग्याई बाघ,
वैते देखी कन, बंद पड़ ग्यु दिमाग,
नि आव देखि नि ताव,
मि गयुं वख बिटिन भाग।
बाघन सुणी म्यार आवाज,
मेते लगु युक शिकार बनलु मि आज,
बाघ अब म्यार पिछने आई,
मीन भी अपड़ी चाल बढ़ाई।
अग्ने अग्ने मि, पिछने पिछने बाघ,
कन फुटिन म्यार भाग,
मिन अपर मन मा ब्वाल,
हे शैल अब तयार क्या ह्वाल ।
हनुमान चालीसा कु करि मिन जप,
अँधेरुं हुयूँ छ बल पुरु घप,
तभी समणी बिटिन दिख म्यार दगड़िया,
वैन पूछी और भेजी सब बढ़िया ?
मिन ब्वाल अबे निर्भगी, पिछने छ बाघ,
हालात छ ख़राब,
पर वेते, कुछ नि फ़िकर,
किले की पीं छ्याई वैन शराब ।
तब मेरु दिमागम आयी एक उपाय,
मिन वैकु किस्सा जपकाय,
वैमन माचिस कु डिब्बी निकाल,
डाली तोड़िकन बनै मशाल।
आग लगे कण बाघक तरफ फरकाये
और बाघ से अपरु पीछा छुटाए,
घोर जैकन मि बन गयुं शेर,
बड़ी बड़ी फेंकी कि बाघ ते मिन कर दियाई ढेर।
----शैलेन्द्र डबराल "शैल"-----(copyright)
उत्तराखंड राज्य कु 21वीं स्थापना दिवस पर आप सब्यू कुन मेरी भेंट।
बहुत बढ़िया कविता लिखी है
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